संयुक्त
विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा: अवसर और चुनौतियाँ
*राघवेंद्र
यादव
संयुक्त
विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा (सीयूईटी) पूरवर्ती केंद्रीय विश्वविद्यालय संयुक्त प्रवेश
परीक्षा (सीयूसीईटी) का संशोधित रूप है। सीयूसीईटी 2010 में यूपीए के कार्यकाल में
शुरू हुआ था। सीयूसीईटी नए केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए बनी थी। बाद में कुछ केंद्रीय
विश्वविद्यालय और राज्य विश्वविद्यालय और जुड़ गए। अगर अब उस प्लान का विस्तार कर पुरे
देश के उन 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों से जोड़ दिया गया जो शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार
से सम्बद्ध है तो यह सराहनीय कदम है। इसकी मांग बहुत पहले से अकादमिक जगत में चल रही
थी लेकिन वे सिर्फ 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए ही क्यों? जबकि यूजीसी के वेबसाइट
पर 54 केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं। वे विश्वविद्यालय जो शिक्षा मंत्रालय से जुड़ें हैं
उनमें सीयूईटी लागू है। लेकिन जो केंद्रीय विश्वविद्यालय शिक्षा मंत्रालय से सम्बद्ध
न होकर भारत सरकार के अन्य मंत्रालयों से सम्बद्ध हैं; उन विश्वविद्यालयों में भी सीयूईटी
लागू होना चाहिए। वास्तव में सीयूईटी ठीक उसी तरह का एक यूनिक मॉडल होगा जैसे आईo आईo
टीo, आईo आईo एमo, मेडिकल कॉलेज (एनo ईo ईo टीo), नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (क्लैट) और
अन्य इलीट इंस्टिटूशन्स में प्रवेश परीक्षा थी। ‘संयुक्त विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा’
को ‘केंद्रीय विश्वविद्यालय संयुक्त प्रवेश परीक्षा’ बनाकर इसको सिर्फ सभी केंद्रीय
विश्वविद्यालयों में लागू किया जाना चाहिए तथा राज्य विश्वविद्यालयों, डीम्ड विश्वविद्यायलयों
और अन्य में नहीं। लेकिन हां, सभी अलग-अलग राज्यों के राज्य विश्वविद्यालयों के लिए
एक फार्म और एक परीक्षा पद्धति होनी चाहिए अर्थात एक राज्य में उस राज्य के सभी विश्वविद्यालयों
और उसके संघटक कालेजों के लिए एक संयुक्त प्रवेश परीक्षा होनी चाहिए जिससे उस राज्य
के सभी विश्वविद्यालयों और उसके संघटक कालेजों में दाखिला मिल सके।
शिक्षा
मंत्रालय (पूरवर्ती मानव संसाधन विकास मंत्रालय) भारत सरकार ने सीयूईटी के माध्यम से
प्रवेश परीक्षा करवाने का दायित्व राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) को दिया है। सीयूईटी
का पुरे देश में विरोध हो रहा है और इसे बंद करके पहले जैसी प्रणाली को लागू करने की
मांग की जा रही है। विरोध होना सही भी है क्योंकि पुरे देश से आने वाले ग्रामीण और
सुदूरवर्ती क्षेत्र के छात्रों पर इसका नकारात्मक असर पड़ेगा खास तौर से राज्य स्कूल
बोर्डों से पढ़ने वाले छात्रों और छात्राओं पर। मेरे ख्याल से इसका विरोध सिर्फ संशोधन के लिए होना चाहिए। सीयूईटी को बंद करके
पहले जैसी प्रणाली के लिए नहीं क्योंकि अलग-अलग विश्वविद्यालयों का अलग-अलग फॉर्म भरना,
फीस जमा करना, परीक्षा देना इत्यादि चीजें छात्रों और छात्राओं के लिए अवसर सीमित कर
देती है तथा सरकार के संसाधन ज्यादा खर्च होते है। अगर एक फॉर्म और एक परीक्षा से देश
के सभी केंद्रीय विश्वविद्यालय और संघटक कालेजों में या एक फॉर्म और एक परीक्षा से
किसी भी एक राज्य के सभी विश्वविद्यालयों और संघटक कालेजों में दाखिला पाने के अवसर
हो तो यह अच्छा है और इसे होना चाहिए। इससे छात्रों और छात्राओं का समय, पैसा समेत
कई तरह से लाभ होगा। यह लाभ सिर्फ छात्रों और छात्राओं का ही नहीं अपितु इससे सभी विश्वविद्यालयों
का मानव श्रम बचेगा तथा साथ ही साथ आर्थिक बोझ भी कम होगा। केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों
के दाखिला प्रक्रिया में एकरूपता लाने की दिशा में यह एक सराहनीय कदम है। एकरूपता होने
के कारण लोगों को समान अवसर मिलेंगे।
विश्वविद्यालयों
में दाखिला पाने के लिए सिर्फ तीन प्रणाली हो सकती है। पहला प्रवेश परीक्षा, दूसरा
न्यूनतम योग्यता के मेरिट के आधार पर और तीसरा प्रथम आगमन, प्रथम स्वागतम के आधार पर।
इसमें सबसे सशक्त और अच्छा प्रवेश परीक्षा प्रणाली है। भारतीय संविधान में शिक्षा समवर्ती
सूची में होने के नाते भारतीय स्कूल प्रणाली में केंद्र तथा राज्य के स्कूल बोर्डों
में विविधता है और अलग-अलग राज्य के स्कूल बोर्डों में भी विविधता है। अलग-अलग स्कूल
बोर्डों के पाठ्यक्रम एवं मूल्यांकन पद्धति में एकरूपता नहीं है। जो स्कूल बोर्ड मूल्यांकन का उदार पद्धति अपनाते है
उन बोर्ड के छात्रों का लाभ होगा। जिसमें सीबीएसई और आईसीएससी जैसे बोर्ड शामिल है।
कुछ स्कूल बोर्ड सामान्य मूल्यांकन पद्धति
अपनाते है और कुछ स्कूल बोर्ड शख्त मूल्यांकन पद्धति अपनाते है। अगर दाखिला प्रवेश
परीक्षा की मेरिट के अलावा कक्षा की मेरिट पर होगी तो जो स्कूल बोर्ड मूल्यांकन का
शख्त पद्धति अपनाते है उन स्कूल बोर्ड के छात्रों और छात्राओं का नुकसान होगा। ज्ञानार्जन
आधारित अध्ययन और अंक संग्रहण आधारित अध्ययन, ये दो अलग-अलग पढाई के तरीके है। अंक
संग्रहण आधारित अध्ययन कक्षा की परीक्षा में अच्छा अंक लाने में सहायक हो सकता है लेकिन
जरुरी नहीं है कि इससे प्रवेश परीक्षा में भी अच्छा नंबर आये जबकि ज्ञानार्जन आधारित
अध्ययन करने से प्रवेश परीक्षा में अच्छा नंबर लाया जा सकता है। अगर न्यूनतम योग्यता
के मेरिट के आधार पर प्रवेश दिया जायेगा तो गरीब, ग्रामीण और सुदूरवर्ती छात्रों पर
नकारात्मक असर पड़ेगा और फलस्वरूप गरीब और अमीर के बीच खाई बढ़ती जायेगी। शिक्षा केंद्र
और राज्य दोनों का विषय है। केंद्र सरकार सिर्फ केंद्राश्रित शैक्षणिक संस्थानों को
संचालित और निगमित करने के लिए विधि बना सकती है। राज्याश्रित शैक्षणिक संस्थानों लिए
नहीं। राज्य अपने शैक्षणिक संस्थानों को संचालित और निगमित करने के लिए खुद विधि बनायेंगे।
एनटीए, शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार की एजेंसी है तो उसको केंद्र सरकार के शैक्षणिक
संस्थानों के लिए प्रवेश परीक्षा लेना चाहिए। सभी राज्यों के विश्वविद्यालयों का नहीं।
राज्यों के विश्वविद्यालयों में विविधता है इसलिए एक प्रवेश परीक्षा से सभी राज्यों
के विश्वविद्यालयों में दाखिला नहीं लिया जाना चाहिए।
यूजीसी
के चेयरमैन डॉ मम्मीडाला जगदीश कुमार एक इंटरव्यू में बता रहे थे कि शैक्षणिक संस्थान
सीयूईटी के अंक के आलावा मेरिट के आधार पर न्यूनतम योग्यता निर्धारित कर सकते है। अब
सवाल यह है कि इसकी जरुरत क्यों है? और अगर ऐसा किया जायेगा तो इसका असर किस तबके के
छात्रों और
छात्राओं पर पड़ेगा? जब सीयूईटी अपने मूल में कक्षा के मेरिट सिस्टम के खिलाफ और प्रवेश
परीक्षा के मेरिट पर आधारित है तो क्या सरकार यह बतायेगी की सीयूईटी के प्रवेश परीक्षा
में अच्छे अंक लाने के बावजूद न्यूनतम योग्यता में कक्षा के मेरिट का औचित्य क्या है?
क्या दाखिला के लिए प्रवेश परीक्षा पर्याप्त मानदंड नहीं है? या फिर यह शोषण करने की
साजिश है और अच्छा करने के नाम पर ग्रामीण, सुदूरवर्ती और प्रथम पीढ़ी अध्ययन करने वाले
छात्रों और छात्राओं को अच्छे शैक्षणिक संस्थानों में दाखिला लेने से वंचित करने की
सरकारी नीति है। अगर प्रवेश परीक्षा हो रहा है तो उसके बाद न्यूनतम अंक निर्धारित करने
का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि छात्र प्रवेश परीक्षा में अपने योग्यता का प्रदर्शन
कर रहा है। इसलिए प्रवेश परीक्षा के आलावा न्यूनतम अंक निर्धारित करने की प्रासंगिकता
नहीं है। अगर संस्थान अलग-अलग मेरिट रखेंगे तो उनमें एकरूपता कहाँ होगी? केंद्र को
चाहिए कि शैक्षणिक संस्थानों में एकरूपता लाने के लिए एक कानून बनाये जिसको सभी विश्वविद्यालय
और संघटक कॉलेज पालन करें। सभी शैक्षणिक संस्थानों में एकरूपता लाना सीयूईटी के मूल
मकसद में से एक है जिससे सबको समान अवसर मिले तो फिर अलग-अलग शैक्षणिक संस्थानों में
एक पाठ्यक्रम के न्यूनतम योग्यता में विविधता होना उसके मूल उद्देश्य के खिलाफ होगा।
इस
देश के बड़े हिस्से में एनसीईआरटी की किताबें नहीं पढ़ाई जाती है। इसलिए वे छात्र प्रभावित
होंगे जो राज्य बोर्ड से पढ़ते है और इससे सीबीएसई बोर्ड के छात्रों को लाभ होगा जिसमें
अधिकतम अच्छी आर्थिक स्थिति के बच्चे पढ़ते हैं। सरकार अक्सर अमीर आश्रित नीतियां बनाती
है। ये नीति भी उन्ही में से एक साबित होगी क्योंकि प्रस्तावित प्रवेश परीक्षा सीबीएसई
पैटर्न पर आधारित होगी। हालाँकि एनसीईआरटी की किताबें मेरे अनुभव में सभी बोर्डों की
किताबों से अच्छी हैं। इसलिए गणित, विज्ञान, अर्थशास्त्र ...... इत्यादि को (साहित्य
को छोड़ कर) सभी स्कूल बोर्डों में अनिवार्य कर देना चाहिए। साहित्य का पाठ्यक्रम जैसे
हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती, मराठी ..... इत्यादि सम्बंधित राज्यों को निर्धारित करना
चाहिए। ऐसा करने से कई फायदे एक साथ सध जायेंगे जो सरकारों का उद्देश्य भी है और चुनौती
भी। सभी स्कूल बोर्डों में एनसीईआरटी लागू करने से देश की शिक्षा में एकरूपता आयेगा
जिसका लाभ न सिर्फ सीयूईटी में मिलेगा बल्कि जितनी भी संयुक्त प्रवेश परीक्षाएं होती
है जैसे आईo आईo टीo, एनo ईo ईo टीo, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी..... इत्यादि सभी में राज्य
बोर्डों के छात्र-छात्राओं की हिस्सेदारी बढ़ेगी और दूसरा इससे निजी स्कूलों की किताबों
पर हो रही लूट को ख़त्म किया जा सकेगा जिससे अभिभावकों को आर्थिक शोषण से बचाया जा सकता
है।
सामान्य
वर्ग की फीस 650 रुपया है। ईडब्ल्यूएस और ओबीसी नॉन क्रीमीलेयर की फीस 600 रुपया है।
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पीडब्ल्यूडी और थर्ड जेंडर के लिए 550 रुपया फीस निर्धारित
है। भारत सरकार ने बीपीएल को भी फीस में छूट देने का प्रावधान बनाया है। राष्ट्रीय
परीक्षा एजेंसी और यूजीसी के नीति निर्माताओं को चाहिए कि वे बीपीएल छात्रों और छात्राओं
की फीस भारत सरकार के छूट नीति के तहत निर्धारित करें। सामान्य वर्ग की फीस से ईडब्ल्यूएस
और ओबीसी नॉन क्रीमीलेयर को 50 रुपया कम और ईडब्ल्यूएस और ओबीसी नॉन क्रीमीलेयर की
फीस से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पीडब्ल्यूडी और थर्ड जेंडर को 50 रुपया कम
करने से कल्याण पर क्या प्रभाव होगा? क्या इतना कम छूट का प्रावधान जानबूझकर इस लिए
बनाया गया है ताकि आरक्षण होना और आरक्षण न होना लगभग बराबर हो या इसका खास असर न हो?
यूजीसी नेट में एनटीए सामान्य वर्ग से 50% कम फीस ओबीसी नॉन क्रीमीलेयर को और ओबीसी
नॉन क्रीमीलेयर से 50% कम फीस अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पीडब्ल्यूडी और थर्ड
जेंडर को देने का प्रावधान है। यूजीसी के नीति निर्माताओं को चाहिए कि वे भारत सरकार
द्वारा बनाये गए ‘शुल्क में छूट’ नियमों के तहत आरक्षित वर्गों की शुल्क निर्धारित
करें।
संयुक्त
प्रवेश परीक्षा करवाने के तीन मॉडल हो सकते है। पहला विश्वविद्यालयों का एक संगठन बनाकर
प्रवेश परीक्षा की जिम्मेदारी किसी एक विश्वविद्यालय को दे देना। दूसरा केंद्र और राज्य
सरकारें राष्ट्रीय और राज्य प्रवेश परीक्षा एजेंसी बना कर सम्बंधित शैक्षणिक संस्थानों
में संयुक्त प्रवेश परीक्षा करवायें। तीसरा और सबसे सशक्त तरिका होगा अगर संघ लोक सेवा
आयोग और राज्यों के लोक सेवा आयोगों को सम्बंधित शैक्षणिक संस्थानों में दाखिला के
लिए प्रवेश परीक्षा करवाने का भी दायित्व दे दिया जाय। ज्ञात हो कि अभी तक संघ लोक
सेवा आयोग और लोक सेवा आयोग सिर्फ केंद्र और राज्य के लिए नौकरियों के लिए प्रवेश परीक्षा
करवाते है। अगर इसमें कानूनन संशोधन करके दो अलग-अलग विभाग बना दिया जाय जिसमें एक
विभाग नौकरियों में प्रवेश परीक्षा करवाये और एक विभाग शैक्षणिक संस्थानों में दाखिला
के लिए प्रवेश परीक्षा करवाये तो यह स्थाई समाधान होगा। आईo आईo टीo, आईo आईo एमo,
एनo ईoईo टीo समेत सभी केंद्रीय शैक्षणिक संस्थाओं को संघ लोक सेवा आयोग से जोड़ देना
चाहिए और सभी राज्य शैक्षणिक संस्थाओं में होने वाले संयुक्त प्रवेश परीक्षाओं को सम्बंधित
राज्यों के लोक सेवा आयोगों से जोड़ देना चाहिए। भारत एक कल्याणकारी राज्य होने के नाते
सरकार इन आयोगों से चाहे तो निःशुल्क प्रवेश परीक्षा करवा सकती है जिससे गरीब और अमीर
सभी तबके के सभी छात्रों-छात्राओं को समान अवसर मिलेगा और परिणाम स्वरुप शिक्षा का
विस्तार होगा जो यूजीसी, सरकार और विश्व समुदायों सभी का लक्ष्य है। या इसके अलावा अगर सरकारें पूरा खर्च उठाने में
सक्षम नहीं है तो सम्बंधित आयोग न्यूनतम शुल्क पर प्रवेश परीक्षा करवा सकती है। अगर
सरकारें कोई आर्थिक सहयोग नहीं देतीं हैं तो
सम्बंधित आयोग नो प्रॉफिट नो लॉस के सिद्धांत पर प्रवेश परीक्षा करवा सकती है। तीसरे
मॉडल के तीनों विकल्प ठेके पर प्रवेश परीक्षा करवाने के तुलना में एक अच्छा और आदर्श
विकल्प होंगे।
सीयूईटी
लागू करने के फायदे है लेकिन संशोधन करने के बाद और अगर संशोधन नहीं किया गया तो इससे
नुकसान भी होगा जिसका नकारात्मक असर गरीब, ग्रामीण तबके और सुदूरवर्ती क्षेत्र के छात्रों
और छात्राओं पर सबसे ज्यादा पड़ेगा। इसके अलावा जो छात्र-छात्राएं अच्छे संसाधनों से
वंचित है उन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसके लिए सरकार, गैर सरकारी संगठन और सिविल
सोसाइटी सबकों आगे आना चाहिए जिससे सभी तबके के छात्रों और छात्राओं को समान अवसर मिल
सके। केंद्र सरकार के स्कूल बोर्ड अमीर छात्रों के स्कूल बोर्ड माने जाते है। अगर पाठ्यक्रम
में बिना एकरूपता लाये सीयूईटी सीबीएसई पैटर्न पर करवाया जायेगा तो इससे राज्य बोर्ड
के छात्रों और छात्राओं का नुकसान होगा। इस नुकसान से बचने और स्कूली शिक्षा में एकरूपता
लाने के लिए सभी स्कूल बोर्डों में एनसीईआरटी अनिवार्य रूप से लागू करवा देना चाहिए।
सीयूईटी विवरण-पुस्तिका के अनुसार इस प्रवेश परीक्षा में हिंदी, मराठी, गुजराती, तमिल,
तेलुगू, कन्नड़, मलयालम, उर्दू, असमिया, बंगाली, पंजाबी, ओडिया और अंग्रेजी समेत कुल
तेरह भाषाओं में प्रश्न पत्र आयेगा। क्या भारत में सिर्फ तेरह भाषाओं में स्कूल बोर्ड
की पढ़ाई होती है? उन राज्यों के स्कूल बोर्डों में जहाँ इन तेरह भाषाओं के आलावा किसी
अन्य भाषा में पढ़ाई होती है उन राज्यों के छात्रों का नुकसान होगा। इसकी भरपाई कैसे
होगी? सरकार के नीति निर्माताओं को चाहिए कि जितने भाषाओं में स्कूल बोर्ड की पढ़ाई
होती है उन सभी भाषाओं में प्रवेश पत्र का माध्यम दें। जिससे किसी भी स्कूल बोर्ड के
साथ अन्याय न हो। सरकार को चाहिए कि वे ग्रामीण और सुदूरवर्ती क्षेत्रों में पर्याप्त
संख्या में परीक्षा केंद्र सुनिश्चित करे। ग्रामीण और सुदूरवर्ती क्षेत्रों में आन
लाइन और ऑफ लाइन दोनों विकल्प दिया जाना चाहिए। पहले सीयूसीईटी पुरे भारत में नये केंद्रीय
विश्वविद्यालय में स्नातक, परास्नातक एवं शोध पाठ्यक्रम में दाखिला लेने के लिए एक
प्रवेश परीक्षा आयोजित करती थी। सीयूईटी को भी स्नातक के अलावा परास्नातक और शोध पाठ्यक्रम
के साथ-साथ डिप्लोमा और विश्वविद्यालयों में होने वाले सर्टिफिकेट कोर्स के लिए भी
लागू किया जाना चाहिए।
*लेखक:
अर्थशास्त्र एवं आयोजन अध्ययन केंद्र, केंद्रीय विश्वविद्यालय गुजरात में शोधार्थी
है। उन्हें ईमेल <raghuyadav50@gmail.com> से संपर्क किया जा सकता है।